आत्मा और परमात्मा के मिलन से एक अद्वतीय आनन्द का अविर्भाव होता है
मन और अन्त:करण की एकता में, दोनों के मिलन में ही सुख है। इसी को योगिक शब्दावली में आत्मा और परमात्मा का मिलन कह सकते हैं। इस मिलन का ही दूसरा नाम “योग’ है। आत्मा और परमात्मा के मिलन से दोनों के योग से एक ऐसे आनन्द का अविर्भाव होता है, जिसकी तुलना संसार के अन्य किसी भी सुख से नहीं की जा सकती। एक भक्त का अपने भगवान जी से मिलन एकाकार होने का जो सुख है वह किसी और चीज में हो ही नहीं सकता। इसी सुख को परमानन्द, जीवनमुक्ति, ब्रह्म-निर्वाह, आत्मोपलब्धि, प्रभु-दर्शन आदि नामों से पुकारा जाता है।प्रेम ही सम्पूर्ण सुखों का आधार है। आज प्रत्येक व्यक्ति सुखी जीवन के लिए तरह-तरह के साधन जुटाता है सुख के लिये हरचन्द प्रयत्न भी करता है किन्तु फिर भी अधिकांश लिग दु:खी एवं क्लान्त दिखाई देते हैं। इसका एकमात्र कारण है वे प्रेम को छोड़कर अन्यत्र सुख की खोज करते हैं जो बालू में तेल निकालने जैसा प्रयत्न है। सुख भोगने के लिए प्रेम को जीवन में उतारना होगा। इसी की साधना करनी होगी।दूसरों की बुराइयां ढूंढ़ने में हमारी दृष्टि अलग तरीके से और अपनी बात आने पर और तरीके से काम करती है। यदि यह दोष हटा दिया जाय और दूसरों की भांति अपनी बुराई भी देखने लग जायें, दूसरों को सुधारने की चिन्ता करने की भांति यदि अपने को सुधारने की भी चिन्ता करने लगें तो इतना बडा काम हो सकता है जितना सारी दुनियां को सुधार लेने पर ही हो सकना संभव है।चरित्र ही जीवन की आधार शिला है। मनुष्य संसार में जो कुछ सफलता, सौभाग्य, सुख प्राप्त करता है उसके मूल में उसके चरित्र की उच्चता ही रहती है। निर्बल चरित्र वाले अथवा चरित्रहीन व्यक्ति का जीवन निस्सार और महत्त्वशून्य है। चाहे वह सांसारिक दृष्टि से थोडा या अधिक धन प्राप्त करके आराम का जीवन व्यतीत करता हो पर अन्य लोगों की दृष्टि से वह कभी प्रतिष्ठा या सम्मान का पात्र नहीं हो सकता।