गर्भवती के आंवल की झिल्ली प्रत्यारोपित कर बच्चे की आंख में ले आए रोशनी
जोधपुर। रोशनी के पर्व पर अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (जोधपुर एम्स) के नेत्र रोग विभाग ने आंख चूना गिर जाने से मंद हुई एक 11 साल के बच्चे की नजर को पुन: उजाले में तब्दील कर दिया। इस ऑपरेशन को सफल बनाने में चिकित्सकों को गर्भवती के आंवल का सहारा लेना पड़ा।जोधपुर एम्स के नेत्र रोग विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर डॉ. अरविंद कुमार मौर्या ने बताया कि खेलते समय आंख में चूना गिरने से बच्चे की बायीं आंख के हीरे पर सफेदी आ गई और उसकी रोशनी कम हो गई। शरीर में बनने वाले आंख के हीरे के सेल भी नष्ट हो गए। कुछ दिन आंख की सूजन कम करने की दवाइयां दी गई, लेकिन आंख के हीरे में कोई सुधार नहीं आया। आंख का हीरा बदलने के अलावा चिकित्सकों को एकबारगी कोई रास्ता नजर नहीं आया। हीरे उपलब्ध होने में अस्वीकृति के आसार भी ज्यादा थे। इस दौरान डॉ. मौर्या व टीम ने गर्भ की आंवल (ऐम्नीआटिक मेम्ब्रेन) ग्राफ्टिंग के साथ लिंबल एपिथिलियल सेल प्रत्यारोपण का रास्ता चुना। मरीज की दायीं आंख से लिंबल स्टेम सेल लिए गए। ताकि वे हीरे नए सेल बनाने में मदद करें। इसके बाद नए बच्चे को जन्म देने वाली गर्भवती की आंवल से ऐम्नीआटिन मेंब्रेन ली। इसके लिए दूसरी आंख से लिए गए लिंब स्टेम सेल को ग्लू से चिपकाया। इसके बाद एक कांटेक्ट लैंस रखा। एक सप्ताह में आंख के हीरे में सुधार आ गया। बच्चे की रोशनी बेहतर हो गई। बच्चे को पूर्णत सही होने में 6 माह से 1 साल तक लगेगा।आंख की सूजन को सही किया: एम्स में एक पैंतालीस साल के मरीज का अचानक दृष्टि कम होने का इलाज किया गया। डॉ. मौर्या ने बताया कि मरीज 4 दिन पहले नेत्र विभाग में दोनो आंखों में दर्द, अचानक दृष्टि कम होने की तकलीफ के साथ आया था। उसकी दाहिनी आंख में दृष्टि कम थी। दोनों आंख की पुतली के आकार में अंतर था और रंग दृष्टि में भी दोष था। जांच करने पर आंख में सूजन पता चली। एमआरआइ रिपोर्ट में भी यही सामने आया। चिकित्सकों ने स्टूरॉइड थैरेपी का सहारा लेना शुरू किया। स्टूरॉइड साधारण मात्रा से ज्यादा दिया गया। इंजेक्शन के बाद स्टूरॉइड गोलियां दी गई। जो धीरे-धीरे कम भी की गई। इस दौरान मरीज के शरीर पर पडऩे वाले दुष्प्रभाव व ब्लड प्रेशर पर लगातार मॉनिटरिंग रखी गई। इसके बाद मरीज की नजर 6 गुणा 6 आ गई और आंखों की सूजन भी कम हो गई।