महाभारत विजय का ग्रंथ: स्वामी गोविंददेव गिरी महाराज

जोधपुर। माहेश्वरी जनोपयोगी भवन रातानाडा मेें प्रारंभिक महाभारत संदेश कथा में स्वामी गोविंददेव गिरी महाराज ने महाभारत की महिमा बताते हुए कहा कि जीवन में चारों पुरूषार्थो का संपूर्ण मार्गदर्शन महाभारत में जैसा मिलता है- वैसा अन्यत्र कहीं नहीं मिलता।
प्रवक्ता भंवरलाल बाहेती ने बताया कि संपूर्ण वेदों का सार महाभारत में होने से इसे पंचमवेद भी कहा जाता है। महाभारत भारतीय संस्कृति का आधार स्तंभ है। इस ग्रंथ के लिए अनेक भ्रांतिया है लेकिन जीवन में किसी भी विकट व उलझी हुई परिस्थितियों पर विजय प्राप्त करने की शक्ति प्रदान करने के लिए भगवान वेद व्यास का दिया हुआ विचार मंथन है। महाभारत विजय का ग्रंथ है। महाभारत कर्तव्यपरायणता, गृहस्थाश्रम धर्म एवं कर्मयोग को प्राधान्य देने वाला महान ग्रंथ है। श्रीमद्भागवतगीता महाभारत का सार है तो महाभारत गीता का विस्तार है। कथा आयोजक मोहनलाल भंवरलाल सोनी परिवार द्वारा आयोजित कथा में महाराज ने आगे कहा पांडवों की विशेष बात यह रही कि पूरे जीवन में वे कभी भी धृतराष्ट्र का अपमान नहीं किए फिर भी धृतराष्ट्र के मन में नित्य उनके प्रति कपट रहा था। कुंती व कृष्ण संवाद बडा ही भाव विभोर करने वाला प्रसंग था, उसे सुनकर श्रोताओं के आंखों से भी अश्रुधारा बहने लगी। इससे पूर्व व्यास पीठ की पूजा मुरलीधर, ओमप्रकाश, गोपाल, दिलीप सोनी एवं रमेश मर्दा ने सपत्निक की।इस अवसर पर हिमाचल निवासी अमरज्योति महाराज, महंत रामप्रसाद महाराज का माल्यापर्ण कर सोनी परिवार द्वारा स्वागत किया गया।

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