तिंवरी में दिव्य कलश यात्रा से भव्य भागवत कथा का शुभारंभ
जोधपुर। भारतीय वैदिक संस्कृति एवम् शाश्वत ब्रह्मज्ञान द्वारा ईश्वर दर्शन के विज्ञान से पुनः जन मानस को अवगत करवाकर दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान धर्म की स्थापना हेतु माधव–मुरारी के वास्तविक मर्म को समझने आया है। इसी हेतु संस्थान श्रीमद् भागवत कथा का भव्य आयोजन राजकीय उच्च माध्यमिक विद्यालय, तिंवरी में रविवार 24 से 30 सितंबर तक दोपहर 2 बजे से सायं 6 बजे तक करने जा रहा है|
इस कथा का वाचन परम पूजनीय गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्या विश्व विख्यात कथा व्यास मानस मर्मज्ञा साध्वी सुश्री स्वाति भारती जी के मुखारबिंद से होगा | इसी के तहत जनमानस को भारतीय संस्कृति की गरिमा एवं प्रतिष्ठा के प्रति जागरूक करने के लिए शनिवार, 23 सितंबर को तिंवरी में विशाल एवं भव्य मंगल कलश यात्रा ढोल नगाड़ो के साथ निकाली गयी | जिसका शुभारम्भ साध्वी पूनम भारती जी एवं आदरणीय अतिथिगण भैराराम सियोल जी (पूर्व विधायक ओसियां),राजूराम विश्नोई जी (सब इंस्पेक्टर), मनीष भाणु तिंवरी, प्रेम जी(विश्व हिंदू परिषद) , पन्नालाल जी सेवक ,नरसिंह जी भार्गव(भगत सिंह स्कूल) द्वारा ध्वज लहरा कर किया गया |
कलश यात्रा कथा स्थल तिंवरी के विभिन्न क्षेत्रों से होते हुए पुनः कथा स्थल पर पहुंच गई | जिसमे कुल 500 पीताम्बरधारी सौभाग्यवती महिलाओं ने कलश धारण कर भाग लिया और सैकड़ो की संख्या में बढ़ चढ़ भक्तों ने शिरकत की | उनके कंठ से मुखरित हो रहे जय श्री कृष्ण के जयघोष ने पुरे छेत्र को आहलादित कर दिया| कलश यात्रा गंगा के मानिंद प्रवाहित होती हुई वातावरण के कलुषित हृदय को पवित्र व निर्मल बनाती जा रही थी | गांव के विभिन्न स्थानों में कलश यात्रा का सुगंधित पुष्पों से भव्य स्वागत किया गया | साथ ही संस्थान के महिला सशक्तिकरण हेतु कार्यरत संतुलन प्रकल्प के तहत तिंवरी की विभिन्न स्कूलों की बालिकाओं ने बढ़ चढ़कर भाग लिया ! इसी के साथ संस्थान के प्रकल्प संस्कारशाला के अंतर्गत बच्चों का प्रोग्राम भी रखा गया जिसके अंदर बच्चों को हमारे सनातन पुरातन संस्कृति का महत्व बताया गया | इस मौके पर रंगबिरंगे फूलों से सजाई गयी झांकी कलश यात्रा के आकर्षण का मुख्य केंद्र बनी |
इस कथा की विशेषता यही है कि आज समाज में ईश्वर के नाम पर जो रूढ़िवादिता एवम् पाखंड फैला हुआ है उसके प्रति लोगों को जागरूक किया जाए एवम् ईश्वर दर्शन की सनातन भारतीय संस्कृति एवम् वैदिक परंपरा से जुड़ कर आज समाज केवल ईश्वर को मानने तक सीमित न रहे बल्कि उसका साक्षात दर्शन कर उन्हे जान सके, जैसे अर्जुन ने कृष्ण का विराट दर्शन करके उन्हे वास्तव ने पहचाना था।