हार-जीत का सम्बन्ध हमारी सोच पर: संत चंद्रप्रभ
जोधपुर। संत चंद्रप्रभ महाराज ने कहा कि यह न सोचें कि कितने दिन जिए, बल्कि यह सोचें कि कैसे जिए। खुशियों भरा एक लम्हा भी खज़़ाने जैसा लगता है, पर गम भरा एक साल भी अंधेरी गुफा में भटकने जैसा लगता है। जि़दगी जीने का मकसद खास होना चाहिए, अपने आप पर हमें विश्वास होना चाहिए। जीवन में खुशियों की कमी नहीं है, बस, उन्हें मनाने का सही अंदाज़ होना चाहिए। हर समय इतने व्यस्त रहिए कि चिंता करने की फुर्सत ही न मिले। संत प्रवर संबोधि धाम में आयोजित आर्ट ऑफ हैप्पी माइंड प्रोग्राम में शहरवासियों को संबोधित कर रहे थे।
उन्होंने कहा कि हार और जीत का सम्बन्ध हमारी सोच पर है, मान लिया तो हार होगी और ठान लिया तो जीत। कोई आपके खिलाफ दो टेढ़े शब्द बोले तो बुरा न मानें, क्योंकि पत्थर उक्सर उसी पेड़ पर मारे जाते हैं, जिस पर मीठे फल लदे होते हैं। आप जब भी बोलें, धीमें और धैर्य से बोलें, आपकी वाणी औरों के दिलों में प्यार और जिज्ञासा का झरना बहाएगी। शीशा और रिश्ता दोनों एक जैसे होते हैं। पत्थर मारने से शीशा टूटता है और टेढ़ा बोलने से रिश्ता। अदब से बोलिए और सम्हलकर चलिए, शीशा और रिश्ता दोनों सुरक्षित रहेंगे। पत्थर मारने से सिर फूटता है और लाठी मारने से कमर टूटती है, पर टेढ़ा शब्द बोलने से दिल भी टूटता है और रिश्ता भी। गलती सबसे होती है और गुस्सा सबको आता है, फिर बुरा मानने की बजाय क्यों न शांति और सुधार की किरण तलाशी जाए। उन्होंने कहा कि मन में दूषित विचार की लहर उठे तो तत्काल उसकी दिशा बदल दीजिए। अगर ये लहरें सुनामी का रूप ले बैठी तो जीवन का जहाज ही डूब जाएगा। स्वर्ग के रास्ते पर कदम बढ़ाने के लिए अपना स्वभाव अच्छा बनाइये। गंदे स्वभाव से देवता तो क्या, आपके पड़ौसी भी नफरत करते हैं। ईश्वर का अनुग्रह पाने के लिए निष्पाप रहिए और निष्पाप होने के लिए सरलता को सीढ़ी बना लीजिए। स्वर्ग के राज्य में आखिर बच्चे बनकर ही प्रवेश पाया जा सकता है। किसी पर झल्लाने की बजाय उसे काम करने की तहजीब सिखाएँ। डाँटना तभी चाहिए जब कोई एक ही गलती को तीन बार दोहरा बैठे। चिंता और उत्तेजना की आग का त्याग कीजिए। आखिर किसी भी जलती डाल पर शांति की चिडिय़ा नहीं बैठा करती।