सांस्कृतिक पुनर्रचना है नाटक का रूपांतरण: श्रीवास्तव

जोधपुर। अनुवाद और रूपान्तरण दो अलग विधाएं हैं, विशेष रूप से नाटक के रूपान्तरण में सम्पूर्ण परिवेश और संस्कृति रूपान्तरित होती है, जिसमें एक सामाजिक परिवेश को दूसरे सामाजिक परिवेश में ढालना रूपान्तरकार की जि़म्मेदारी होती है…. यह उद्गार जोधपुर थियेटर एसोसिएशन के तत्वावधान में चार-दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह के अन्तर्गत आरटीडीसी होटल घूमर के सेमिनार हॉल आयोजित रंगगोष्ठी में प्रसिद्ध रंग निर्देशक अभिनेता रूपान्तरकार सौरभ श्रीवास्तव ने नाटकों का रूपान्तरण, आवश्यकता, लेखकीय और निर्देशकीय चुनौतियां विषय पर बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किये जिसकी अध्यक्षता राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोराणा ने की।
बोराणा ने कहा कि रूपान्तरण चाहे किसी भी सूरत में हो, विश्व में मानवीय संवेदनाएं और अनुभूतियां एक सी ही होती हैं। थियेटर एसोसिएशन के अध्यक्ष डॉ. अनुराधा आडवानी और सचिव डॉ. एसपी रंगा द्वारा स्वागत उपरान्त कमलेश तिवारी के संयोजन में आयोजित रंग गोष्ठी की खुली चर्चा में विषय पर अपने विचार प्रकट करते हुए राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली के चेयरमैन डॉ. अर्जुनदेव चारण ने बताया कि भाषान्तर, पाठान्तर और रूपान्तर अलग-अलग प्रक्रियाएं हैं.., अनुवाद किसी रचना का पुनर्जन्म होता है, अनुवाद का पहला धर्म ही सहज सम्प्रेषणीयता है जो रचनाकार के मूल भाव को सम्प्रेषित कर सकता है, वहीं शब्बीर हुसैन, मदन बोराणा, डॉ. नीतू परिहार, उम्मेद सिंह भाटी, शहज़ोर अली और आनन्द ने अपनी जिज्ञासाएं प्रकट की। इस अवसर पर भीलवाड़ा के गोपाल आचार्य, दीपिका, वाजिद हसन क़ाज़ी, इश्राकुल इस्लाम माहिर, मज़ाहिर सुलतान ज़ई, मीठेश निर्मोही, नवीन पंछी, पूजा जोशी सहित रंगकर्मी, साहित्यकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे।

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