भगवान शंकर की फिलॉसफी
भगवान शंकर मरघट में निवास करते हैं, मरघट में क्यों रहते हैं? इसका मतलब कि हमें जिंदगी के साथ मौत को भी याद रखना पड़ेगा। सब चीजें याद हैं, पर मौत को हम भूल गए। अपना फायदा, नुकसान, जवानी, खाना-पीना सब कुछ याद है, पर मौत जरा भी याद नहीं है? मौत की बात भी अगर याद रही होती तो हमारे काम करने और सोचने के तरीके कुछ अलग तरह के रहे होते। वे ऐसे न होते जैसे कि इस समय आपके हैं। अगर यह ख्याल बना रहे कि आज हम जिंदा हैं, पर कल हमें मरना ही पड़ेगा; आज मरे हैं, पर कल जिंदा रहना ही पड़ेगा तो यह स्मृति सदा बनी रहती कि हमको क्या करना चाहिए और क्या नहीं करना चाहिए?
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हमारे लिए मरघट और घर दोनों एक ही होने चाहिए। समझना चाहिए कि आज का घर कल मरघट होने वाला है और आज का मरघट कल घर होने वाला है। आज की जिंदगी कल मौत में बदलने वाली है तो कल की मौत नई जिंदगी में बदलने वाली है। मौत और जिंदगी रात और दिन के तरीके से खेल है, फिर मरने के लिए डरने से क्या फायदा? यह नसीहतें हैं जो शंकर भगवान मरघट में रहकर के हमको सिखाते हैं।
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भगवान शंकर न जाने क्या-क्या सिखाते हैं? उनके शरीर को देखा जाए तो मालूम पड़ेगा कि उस पर भस्म लगी हुई है और गले में मुण्डों की माला पड़ी है। अगर सही ढंग से जीवन जीना आता होता तो हमने शंकर जी की भस्म का महत्त्व समझा होता। पूजा करने के बाद हम हवन करते और उसकी भस्म मस्तक पर लगाते हैं। इसका अर्थ है ‘भस्मांतक शरीरम्’—यह शरीर खाक होने वाला है। यह शरीर मिट्टी और धूल है, जो हवा में उड़ने वाला है। जिस शरीर पर हम लोगों को अहंकार और घमंड है, वह कल लोगों के पैरों तले कुचलने वाला है और हवा के धुर्रे की तरीके से आसमान में उड़ने वाला है। शंकर भगवान की यह फिलॉसफी अगर हमने सीखी होती तो मजा आ जाता।