पाकिस्तान के इस मंदिर से शुरू हुई थी होली मनाने की परंपरा

फाल्गुन शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को प्रदोषकाल में होलिका दहन किया जाता है। इस बार होलिका दहन 9 मार्च को पड़ रहा है। इस मौके पर हम आपको एक ऐसे मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं, जिसके बारे में मान्यता है कि यहीं से होली मनाने की परंपरा शुरू हुई थी।यह मंदिर पाकिस्तान स्थित पंजाब प्रांत के मुल्तान शहर में भगवान विष्णु के भक्त प्रह्लाद का मंदिर है। इस मंदिर का नाम प्रह्लादपुरी मंदिर है। होली के समय यहां पर विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। यहां दो दिनों तक होलिका दहन उत्सव मनाया जाता है।कहा जाता है कि पाकिस्तान में मौजूद इस पंजाब प्रांत में होली, होलिका दहन से 9 दिनों तक मनाई जाती है। होली के दिन पश्चिमी पंजाब और पूर्वी पंजाब में मटकी फोड़ी जाती है। भारत की भांति ही यहां पर भी मटकी ऊंचाई पर लटकाई जाती है। यहां के लोग पिरामिड बनाकर मटकी को फोडते हैं। यहां होली के त्यौहार को चौक-पूर्णा नाम से जाना जाता है।इस मंदिर के बारे में कहा जाता है कि यहीं पर नरसिंह भगवान ने एक खंभे से निकलकर प्रह्लाद के पिता हिरण्यकश्यप को मारा था। इसके पश्चात प्रह्लाद ने स्वयं ही इस मंदिर का निर्माण करवाया था। यह भी माना जाता है कि होली का त्यौहार और होलिका दहन की प्रथा भी यहीं से शुरू हुई थी।

क्या है पौराणिक कथा?

पौराणिक कथा के अनुसार, होलिका प्रह्लाद की बुआ थी। प्रह्लाद के पिता दैत्यराज हिरण्यकश्यप भगवान विष्णु से नफरत करते थे क्योंकि भगवान विष्णु ने वराह अवतार में उनके बड़े भाई हिरण्याक्ष का वध किया था। जबकि भक्त प्रह्लाद श्रीहरि के भक्त थे। वे उनकी भक्ति में ही लीन रहते थे।प्रह्लाद के वध के लिए हिरण्यकश्यप ने बहुत प्रयास किए, लेकिन हर समय उसे असफलता ही हाथ लगी। उसके बाद प्रह्लाद को मारने के लिए उसने अपनी बहन होलिका के साथ एक योजना बनाई। दरअसल, होलिका को वरदान प्राप्त था कि वह आग में नहीं जल सकती। लेकिन जब होलिका प्रह्लाद को लेकर आग में बैठी तो वह जल गई और प्रह्लाद को भगवान विष्णु ने बचा लिया।

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