पे्रम है जहां प्रभु है वहां: संत चन्द्रप्रभ
सेवा भारती समाचार
जोधपुर। संत चन्द्रप्रभ सागर महाराज ने कहा कि पे्रम है जहां प्रभु है वहां। प्रभु दिमाग से नहीं, दिल से उठने वाली प्रेम भरी पुकार से प्रकट होते हैं। इसी पुकार के चलते कभी मोहन मीरा के द्वार पर, महावीर चंदनबाला के द्वार पर और नेमिनाथ राजुल के द्वार पर आए थे। संतप्रवर संबोधि धाम में आयोजित लाइव प्रवचनमाला में संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि यह बात सत्य है कि हमने प्रभु को नहीं देखा लेकिन फिर भी हम उसकी भक्ति इसलिए करते हैं क्योंकि वह हमें हर पल देख रहा है इसलिए हम वही काम करें जो उसे दिखाने लायक हो। उन्होंने कहा कि भगवान दूध या पंचामृत से नहीं, श्रद्धा भरे सजल नेत्रों द्वारा किए गए प्रक्षालन से मेहरबान होते हैं। उन्हें चंदन, नारियल, सोना, सिक्के, मिठाइयां और फूल नहीं, हमारे समर्पण भाव चाहिए। विद्यार्थी को परीक्षा में, अमीर को बीमारी में, व्यापारी को घाटे में, गरीब को भूख लगने पर, चोर को पकड़े जाने पर और नेता को चुनाव आने पर भगवान की याद आती है। चुटकी लेते हुए संतश्री ने कहा कि सुख में तो पत्नी याद आए और दुख में परमात्मा, भला यह कहा का न्याय है। काश, व्यक्ति उसे सांसों में बसा ले तो उसकेसामने कोई संक ट ही न आए। प्रार्थना को संकट की वेला का अंतिम शास्त्र बताते हुए संतश्री ने कहा कि अगर हमारा कोई परिजन संकटग्रस्त हो जाए तो दुखी या बेचेन होने की बजाय उसके लिए प्रभु से दुआ मांगे। सारी दवाएं भले ही निष्फल्ल हो जाए, पर परमार्थ भाव से की गई दुआ अवश्य सफल हो जाती है। संत ने कहा कि हमारी प्रार्थनाओं में सर्मपण कम शिकायतें ज्यादा होती हंै। या तो हम प्रभु से याचना करते हैं या फिर शिकायतें। उसने हमें कच्ची बस्ती की बजाय अच्छी बस्ती में पैदा किया, देखने के लिए आखे, चलने के लिए पांव, बोलने के लिए जुबान, सुनने के लिए कान और करने के लिए हाथ दिए, दुनिया में हजारों लोग ऐसे हैं जिनके पास ये चीजें नहीं है इसलिए हम शिकायत की बजाय उसे साधुवाद दें। उन्होंने कहा कि हम नारद की बजाय हनुमान बनें क्योंकि नारद प्रभु को याद करते हैं, पर हनुमान को प्रभु याद करते हैं।