स्वाद का सरताज है मोरक्को का अल हनाउत, 20 से अधिक मसालों से किया जाता है तैयार
आदर्श संतुलन का उदाहरण
इस मसाले की जो बात सबसे दिलचस्प है वह इस मसाले में पड़ने वाले पदार्थो की संख्या नहीं है बल्कि यह है कि इसमें गरम और ठंडी तासीर वाले तत्व लगभग बराबर मात्रा में शामिल किए जाते हैं। गंध, स्वाद और रंगों का समायोजन-संतुलन, सबसे बड़ी चुनौती यह नजर आती है कि एक पदार्थ दूसरे पर चढ़ न जाए या उसके प्रभाव को नष्ट या कम न कर दे। यह संतुलन ही उस अद्भुत स्वाद का जादू जगाता है जिसके लिए रस अल हनाउत मशहूर है।
गिनती चुनिंदा मसालों में
मोरक्को सहित पूरे उत्तरी अफ्रीका में इसे मसालों की दुनिया का शाहंशाह माना जाता है। हालांकि आजकल यह मसाला घर-घर में तैयार नहीं होता वरन बाजार में कुछ प्रतिष्ठित ब्रांड वाले उत्पादकों द्वारा प्रस्तुत रेडीमेड बोतलों या पैकेटों में खरीदा जाने लगा है। यहां यह जोड़ना जरूरी है कि अरब के भोजन में गिने-चुने मसालों का ही उपयोग होता है। अफ्रीका महाद्वीप का मसालों से परिचय अरबों ने ही कराया। इस पृष्ठभूमि में रस अल हनाउत जैसे महंगे, स्वाद, सुगंध व तासीर के जटिल समीकरण साधने वाले मसाले का आविष्कार या परिष्कार आश्चर्यजनक लगता है। हालांकि अरब शासक वर्ग में उन खाद्य पदार्थो के प्रति विशेष आकर्षण देखने को मिलता है जिनका प्रभाव कामोत्तेजक या पौरुष को पुष्ट करने वाला समझा जाता है। इस मसाले की तासीर भी कुछ ऐसी मानी जाती है।
बढ़ाता रोटी का स्वाद
पकाने से अधिक इसका उपयोग ऊपर से छिड़कने वाले चूर्ण के रूप में होता है जिसे सलाद, शोरबे में ही नहीं तमाम प्रकार की रोटियों में भी इस्तेमाल किया जाता है। मांस को भूनने के पहले इसका लेप भी लगाया जाता है और माजून नामक एक मिठाई को भी गरिष्ठ बनाने के लिए रस अल हनाउत का उपयोग होता है। इसी नाम का एक मिष्ठान्न सिंधी रसोई की विरासत है जिसे नवविवाहित युगल को खिलाने की परंपरा रही है। यह सुझाना तर्कसंगत है कि अरबों के साथ सदियों पुराने व्यापारिक रिश्तों के जरिए ही इस मसाले के कुछ तत्व यहां तक पहुंचे होंगे।