चंचल और उग्र मन को शांत और प्रसन्नता पूर्ण बनाता है संबोधि ध्यान : संत चन्द्रप्रभ

जोधपुर। राष्ट्र-संत श्री चंद्रप्रभ जी ने कहा कि मन के दो तल हैं 1. चेतन मन और 2. अचेतन मन। मन की स्थिति पानी में बर्फ की शिला जैसी है। बर्फ का 10 प्रतिशत भाग पानी के ऊपर नजर आता है और 90 प्रतिशत भाग पानी के अंदर। जो ऊपर-ऊपर नजर आता है, वह चेतन मन है और दबा हुआ भाग अचेतन मन। संबोधि ध्यान हमें अचेतन मन की गहराइयों तक ले जाता है। उन्होंने कहा कि चित्त की वृत्तियों का निरोध ही योग है। नृत्य, भजन, संगीत और ध्यान से चित्त-वृत्तियों का निरोध होता है। नृत्य-भजन से आंशिक निरोध होता है, पर संबोधि ध्यान का प्रभाव अचेतन मन की गहराइयों तक पहुँचता है। उन्होंने कहा कि दो जप सबसे श्रेष्ठ हैं 1. ओम और 2. सोहम। ओम ईश्वरीय शक्ति से जुडने के लिए है और सोहम आत्म-स्वरूप में उतरने के लिए। जब इनका ध्यानपूर्वक स्मरण किया जाए तो वह जप कहलाता है और जब जप करते-करते जप विलीन हो जाता है तो वही संबोधि ध्यान बन जाता है। उन्होंने कहा कि ओम अनहद नाद है और सोहम जप। शुरू में हम इनका प्रयासपूर्वक नाद और जप करते हैं, पर ध्यान की स्थिति सध जाने पर कानों में ओंकार का सूक्ष्म नाद सुनाई देता है और साँसों में सोहम का अहसास होता है। उन्होंने कहा कि संबोधि ध्यान में उतरने के लिए पहले तीन बार ओम का नाद करते हुए स्वयं को परमात्मा के सान्निध्य में ले आएँ, गुरु-पद का स्मरण करें, दिमाग को रिलेक्स करते हुए भीतर की ओर उतरने वाली साँस के साथ सोहम का जप करते चले जाएँ। धीरे-धीरे जप विलीन हो जाएगा और तब अनायास प्रवेश हो जाएगा हृदय की अंतरगुफा में, अस्तित्व की अनुभूति में।
संतप्रवर कायलाना रोड़ स्थित संबोधि धाम में आयोजित छः दिवसीय संबोधि ध्यान योग शिविर के दौरान सैकड़ों साधक भाई-बहनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि संबोधि योग जीवन को सुंदर बनाने के लिए है। संबोधि योग के तीन रत्न हैं – 1. आसन, 2. प्राणायाम और 3. ध्यान। आसन आरोग्य के लिए है, प्राणायाम से प्राण-शक्ति का विकास होता है और संबोधि ध्यान से आत्म-प्रकाश के मालिक बनते हैं, भीतर का अंधकार दूर होता है। उन्होंने कहा कि संबोधि ध्यान का लक्ष्य है – चंचल और उग्र मन को शांत और प्रसन्नतापूर्ण बनाना, आत्म-चेतना की ओर केन्द्रित होना। आत्मा में प्रेम, प्रसन्नता, आनंद, उत्साह, करुणा और सौंदर्य को सजीव करना सबसे सुंदर संबोधि साधना है। उन्होंने कहा कि मैं आत्मा हूँ इस सत्य का अनुभव करना ही आत्म-ज्ञान है। आत्मा के अंतरतम में परमात्मा की निर्मल अनुभूति परम आत्म-ज्ञान है। उन्होंने कहा कि मोक्ष है – शाश्वत शांति, परिपूर्ण आनंद। जैसे बच्चे परीक्षा खत्म होते ही किताबों को भूलकर अपनी सहज मस्ती में आ जाते हैं, ऐसे ही खुद को चाह और चिंता के बोझ से मुक्त करके अपनी सहज आनंदमयी स्थिति को जीना मोक्ष है।
इससे पूर्व संतप्रवर ने साधकों ओंकार मंत्र ध्यान साधना का अभ्यास करवाया। इस दौरान योग प्रभारी योगिता ने सभी को आरोग्य और रोग मुक्त शरीर के लिए योगासनों का अभ्यास करवाया।
शुक्रवार को होगा योग, ध्यान एवं जीने की कला पर सत्र – शिविर प्रभारी मुनि शांतिप्रिय सागर ने बताया कि शुक्रवार को सुबह 6.15 बजे स्वास्थ्य लाभ सत्र, 10 बजे जीने की कला पर आध्यात्मिक मार्गदर्शन, दोपहर 3 बजे डाइटिशियन डॉ करूणा मेहता द्वारा संबोधन एवं रात्रि 7 बजे योग नृत्य एवं संबोधि ध्यान का अभ्यास करवाया जाएगा।

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