ईश्वर दर्शन की कसौटी पर सच्चे गुरु की पहचान करें

जोधपुर।“दिव्य ज्योति जाग्रति संस्थान” द्वारा केरू गांव में 21 से 27 मई तक दोपहर 2 से 6 बजे तक चल रही श्रीमद भागवत कथा में संस्थान के संस्थापक एवम् संचालक गुरुदेव सर्व श्री आशुतोष महाराज जी की शिष्य साध्वी सुश्री मेरुदेवा भारती जी ने कथा के द्वितीय दिवस में ध्रुव का प्रसंग रखा। कथा में दीप प्रज्वलन की भारतीय परंपरा के निर्वहन के लिए अतिथि गण श्री डॉ. श्री सुरेश कुमार सैनी(CHC, केरू), श्री भीखाराम बेनीवाल(पूर्व सरपंच, जोलियाली), व श्री रवि कच्छवाहा(JNVU) पधारे।
ध्रुव प्रसंग को भक्त जनों के समक्ष रखते हुए कथा व्यास जी ने कहा कि ध्रुव को अपनी सौतेली मां सुरुचि के द्वारा एक ठोकर मिली थी और उसी एक ठोकर ने उसे ईश्वर भक्ति की ओर उन्मुख कर दिया था। परंतु आज मनुष्य के जीवन में अनेकों ही ठोकरें मिलती है, कभी अपनों के द्वारा तो कभी औरों के द्वारा परंतु फिर भी वह ईश्वर की ओर उन्मुख नहीं होता है। और इस तरह वह जीवन पर्यंत दुखों को ही भोगता रहता है। परंतु आप जानते हैं कि ईश्वर की ओर अपने कदम क्यों नहीं बढा पाता है मनुष्य ? क्योंकि उसके पूर्व के पाप संस्कार ही उसे आगे नहीं बढ़ने देते। तभी संतो ने कहा—
“तुलसी पिछले पाप से हरि कथा ना सुहाय जैसे ज्वर के ताप से भूख विदा हो जाए।”
अर्थात जैसे बुखार होने पर स्वादिष्ट व्यंजन भी खाने पर कड़वे ही लगते हैं ठीक इसी तरह ईश्वर की कथा भी अपने पिछले पापों के कारण मनुष्य को नहीं सुहाती। परंतु इस समस्या का समाधान करते हुए कहा कि यदि मनुष्य संतो का संग करे तो उनकी संगति मात्र से ही मनुष्य के पूर्व के पाप संस्कार समाप्त हो जाते है और शुभ संस्कार जाग्रति हो जाते हैं। तभी कहा गया है—
“एक घड़ी आधी घड़ी आधी से पुनि आध,
कबीरा संगत साध की, कोटि कटे अपराध।”
इसलिए भक्त जनों यदि हम भी अपने जीवन में शाश्वत सुख को पाना चाहते हैं, तो हमे भी संतो की शरणागत होना होगा और उस महान ब्रह्म ज्ञान को प्राप्त करना होगा, जिसे प्राप्त करके ध्रुव के जीवन में सच्चे सुख की प्राप्ति हुई थी। परंतु हम ऐसे सच्चे संत को पहचानेंगे कैसे ? आज तो समाज में इतने सारे भगवा धारी है, इतने बड़े बड़े प्रवचन करने वाले गुरु हैं और उनके पास बड़ी बड़ी सिद्धियां भी है जिसका उपयोग करके वे हमारा भविष्य और अतीत सब कुछ बता देते हैं। तो भक्त जनों इसका उत्तर है ईश्वर दर्शन की सनातन कसौटी। जैसे जगत गुरु श्री कृष्ण ने अर्जुन को विराट रूप दिखा दिया। अगर हमे भी कोई संत ईश्वर का साक्षात दर्शन करवा दें तो उनके समक्ष पूर्ण समर्पण करना ही हमारी आत्मा के कल्याण का निमित होगा।

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