मारवाड़ के केरू ठिकाने की दम तोड़ती छतरियां

जोधपुर। शहर से 15 किलोमीटर की दूरी पर स्थित धांधल राठौड़ों का पाटवी ठिकाना केरू का मारवाड़ के इतिहास में महत्वपूर्ण योगदान रहा था।
राजस्थानी शोध संस्थान के स. निदेशक डॉ. विक्रमसिंह भाटी ने बताया कि इस ठिकाने के धांधल राठौड़ों ने जोधपुर राज्य की रसोड़े की दरोगाई के अलावा मुसाहिबी के साथ ही सोजत, मेड़ता, नागौर की कोतवाली का पद बड़ी निष्ठा के साथ निभाया था। विभिन्न युद्ध अभियानों में धांधल राठौड़ों के काम आ जाने के पश्चात् उनके वंशजों ने और जोधपुर राज्य के सहयोग से केरू के दग्ध स्थल में विशाल छतरियों का निर्माण भी करवाया। वर्तमान समय में धांधल गोयनदास (वि.सं. 1775), धांधल मनोहरदास (वि.सं. 1777), धांधल विहारीदास (वि.सं. 1805), धांधल नारायणदास, धांधल गोविन्ददास के पुत्र प्रेमसिंह की छत्तरियों के अलावा इनके रणिवास के भी स्मृति सूचक पगलिये आदि खण्डहर होते स्मारक अपनी अन्तिम सांसे ले रहे है। यहां करीब 25 स्मारक स्थल मौजूद है। यहां की छत्तरियां स्थापत्य की दृष्टि से न सिर्फ महत्वपूर्ण है बल्कि जोधपुर से सबसे नजदीक इस ठिकाणे के पुरामहत्व की धरोहर की दुर्दशा आज चिंताजनक है। आज छतरियों के गुम्बज गिरने की कगार पर है। यदि समय पर इसके संरक्षण का कार्य नहीं होता है, तो यह सम्पदा नष्ट होगी ही साथ ही जन हादसा होने की स्थिति भी बन सकती है। पुरातत्व विभाग को चाहिये कि ऐसी विरासतों को संरक्षित करें।

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