डॉक्टर धरती के चलते फिरते देवता: संत चंद्रप्रभ
जोधपुर। संत चंद्रप्रभ महाराज ने कहा कि जिनके भीतर सेवा के भाव होते हैं वे डॉक्टर धरती पर चलते फिरते देवता होते हैं। यूं तो व्यवसाय और जॉब के नाम पर दुनिया में कई धंधे हैं लेकिन चिकित्सक ऐसा कार्य है जिसमें मानवता एवं सेवा की सोच अगर दिलो-दिमाग में हो तो यह केवल हमें पैसा ही नहीं देता पुण्य भी देता है और दुखी पीडि़त लोगों के दुखी पीडि़त दर्द से भरे लोगों की जिंदगी में राहत देने का हमें सौभाग्य देता है। संतप्रवर यहां उम्मेद अस्पताल के सभागार में शहर के प्रबुद्ध नागरिकों एवं अस्पताल के डॉक्टर तथा नर्स बहनों को संबोधित कर रहे थे। उन्होंने कहा कि हमें सदा सकारात्मक सोच का मालिक होना चाहिए। जो लोग सकारात्मकता के साथ जीवन जीते हैं वे धरती पर ही स्वर्ग का एहसास करते हैं। सकारात्मक का स स्वर्ग का परिचायक है वहीं नकारात्मकता का न नरक से जुड़ जाता है। जो लोग बी पॉजिटिव के सिद्धांत को अपने जीवन में जीते हैं वे कभी हताश, निराश और कमजोर नहीं होते। वे हर हाल में जीत का सपना देखते हैं। जिंदगी में नकारात्मक सोच वाला ठान लेता है कि मैं कुछ नहीं कर सकता, वहीं सकारात्मक सोच वाला ठान लेता है कि मैं जीवन में सब कुछ कर सकता हूं। जीवन में वे लोग आगे नहीं बढ़ते जो मान लेते हैं अपितु प्रगति के द्वार उन्हीं के लिए खुलते हैं जो जिंदगी में ठान लेते हैं।
संत ने उपस्थित जन समुदाय से कहा कि महात्मा गांधी के तीन बंदर बुरा मत बोलो, बुरा मत देखो, बुरा मत सुनो, इसके साथ हमें एक बंदर को और जोडऩा पड़ेगा जिसकी अंगुली हमारे दिमाग की ओर हो और जो मैं जीवन की प्रेरणा दे रहा हो कि बुरा मत सोचो। सोच हमारे जीवन का मूल आधार होती है। अच्छी सोच हमारे रिश्ते को अच्छा बनाती है, हमारे स्वास्थ्य को अच्छा बनाती है साथ ही हमारे कैरियर और भविष्य को भी स्वर्णिम बना देती है।उन्होंने कहा कि दुनिया का कोई भी अस्पताल किसी एक व्यक्ति विशेष से नहीं चलता है। अस्पताल में प्रबंधक की भूमिका होती है, डॉक्टर की भूमिका होती है और उतनी ही नर्स की भूमिका भी होती है। हमें बड़ी सोच के साथ सबकी भूमिका को सम्मान देना चाहिए। जीवन को मधुर बनाने के लिए हमें अपने मिजाज को हमेशा ठंडा रखना चाहिए। गलती होने पर जो व्यक्ति गलती होने पर झुक जाता है और गुस्सा आने पर रुक जाता है वह जीवन की सौ दुविधाओं से बचा रहता है। संत प्रवर ने कहा कि हमें जीवन को क्रोध से नहीं बोध से जीना चाहिए। क्रोध में व्यक्ति अपना और दूसरों का नुकसान करता है वहीं बोध पूर्वक जीने वाला व्यक्ति, प्रेम और मिठास से जीने वाला व्यक्ति सबकी जिंदगी में अमृत घोल देता है।इस अवसर पर मेडिकल कॉलेज के प्रिंसिपल एस एस राठौड़ ने संतों का अभिनंदन किया और कहा कि उनके उद्बोधन से हम सब लोगों को मार्गदर्शन मिला है। इस अवसर पर समारोह का आयोजन करने के लिए देवेंद्र सन्तोष जैन का संबोधि धाम की ओर से अभिनंदन किया गया। समारोह में डॉ मोहन मकवान कार्यवाहक अधीक्षक उम्मेद हॉस्पिटल, डॉ. अनुष्का सिंह, डॉ. इंदिरा भाटी, डॉ. हंसलता, डॉ. विनय अभिचंदानी, डॉ. डीएस राजपुरोहित, सुखराज मेहता, सुशीला बोहरा, चंद्रा मेहता, अशोक पारख सहित नगर के अनेक गणमान्य लोग भी उपस्थित थे।