मूलत: अभिनेता केंद्रीत होता है नाटक: आचार्य
जोधपुर। नाट्य लेखन में स्पष्ट यह होना चाहिए कि उसमें अभिनय की कितनी सम्भावनाएं हैं.., नाटक सदैव अभिनेता केंद्रीत होता है.., साहित्य लेखन संवेदनात्मक सम्प्रेषण की प्रक्रिया है जो अनुभव से गहराई तक जाती है..। यह उद्गार जोधपुर थियेटर एसोसिएशन के तत्वावधान में चार-दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह के अन्तर्गत आरटीडीसी होटल घूमर के सेमिनार हॉल आयोजित रंगगोष्ठी में सोहित्य अकादमी पुरस्कार के लिये चयनित डा. नन्दकिशोर आचार्य ने नाट्य लेखन की चुनौतियां और आधुनिकता का द्वन्द्व विषय पर बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किए।इसकी अध्यक्षता राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय नई दिल्ली के चेयरमैन डॉ. अर्जुनदेव चारण ने की वहीं दूसरे सत्र में प्रोफेसर सरोज कौशल की अध्यक्षता में भारतीय नाट्य शास्त्र- उत्तर आधुनिक रंगमंच के दौर में समीचीनता विषय पर डॉ. चारण ने बीज वक्तव्य में नाटक को दृष्य श्रव्य काव्य का रूप बताते हुए वेदों और भरतमुनि के नाट्य शास्त्र के हवाले से विस्तारपूर्वक व्याख्यान में इसके विभिन्न आयाम पर चर्चा करते हुए आह्वान किया कि प्रत्येक रंगकर्मी और निर्देशक को नाट्य शास्त्र का ज्ञान होना आवश्यक है। गोष्ठी से पूर्व बिहारी पुरस्कार से पुरस्कृत राजस्थानी भाषा के विद्वान डॉ. आईदान सिंह भाटी और डॉ. नन्दकिशोर आचार्य को शॉल ओढाकर, स्मृति चिन्ह और पुष्पगुच्छ देकर अभिनन्दन किया गया। गोष्ठी में संवाद के क्रम में सत्यदेव संवितेन्द्र, डॉ. नीतू परिहार, शिल्पी इत्यादि ने लेखन पर संवाद किया। इस अवसर पर ख्यातनाम शाइर चिन्तक एवं आलोचक शीन काफ निज़ाम, दोनो सत्र के संचालक कमलेश तिवारी, भीलवाड़ा के गोपाल आचार्य, बीकानेर के सुधेश व्यास, विपिन पुरोहित, डॉ. पद्मजा शर्मा, राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोराणा, पूर्व न्यायाधीश मुरलीधर वैष्णव, डॉ. अनुराधा आडवानी, शब्बीर हुसैन, मज़ाहिर सुलतान ज़ई सहित रंगकर्मी, साहित्यकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे।