आपस में घुली-मिली है ललित कला की समस्त विधाएं: कैफी

जोधपुर। नाटक के लिये कहानी का होना आवश्यक है, समस्त ललित कलाएं आपस में एक दूसरे से पूरी तरह घुली-मिली ही हैं…, नव प्रयोगों में यह ख़तरा बना रहता है, निर्भर यह करता है कि टेक्नोलॉजी को अवाम कितना पसन्द करती है। यह उद्गार जोधपुर थियेटर एसोसिएशन के तत्वावधान में चार-दिवसीय राष्ट्रीय नाट्य समारोह के अन्तर्गत आरटीडीसी होटल घूमर के सेमिनार हॉल आयोजित रंगगोष्ठी में प्रसिद्ध कहानीकार, शाइर और उपन्यासका हबीब कैफी ने कहानी का रंगमंच विषय पर बतौर अध्यक्षीय उद्बोधन में व्यक्त किए।
वहीं जयपुर के जाने माने रंग निर्देशक दिनंश प्रधान ने कहा कि कहानी के रंगमंच में कहानी के साथ छेड़छाड़ की सम्भावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है। रंगकर्मी एवं कहानीकार कमलेश तिवारी ने काहानी के बीज वक्तव्य में कहा कि हमारे देश में कथा वाचन की परम्परा बहुत पुरानी है…, कथा वाचन और कथा गायन से समाज के सभी वर्गों को आसानी से जोड़ा जा सकता है…, कहानी हालांकी कहने की विधा है परन्तु समय परिवर्तन के साथ पाठक एकान्त में पढने लगा लेकिन इस एकाकीपन को हटाने के लिये इसके मंचन की आवश्यकता महसूस की गई।अध्यक्षता राजस्थान संगीत नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोराणा ने की। बोराणा ने कहा कि रूपान्तरण चाहे किसी भी सूरत में हो, विश्व में मानवीय संवेदनाएं और अनुभूतियां एक सी ही होती हैं। दूसरे चरण में न्यू वेव थियेटर – थियेटर 2.0 विषय पर अयोध्या प्रसाद गौड़ ने रंगकर्म में तकनीकी सहायता एवं संचार साधनों के उपयोग को इंगित करते हुए कहा कि न्यू वेव में त्रुटिरहित रंगकर्म किया जाने की सम्भावनाएं व्यापक हैं…।खुले सत्र में डॉ. नीतू परिहार, मनोहर सिंह, नवीन पंछी, शालिनी गोयल राजवंशी, मदन बोराणा, शब्बीर हुसैन ने भाग लेते हुए कहानी और न्यू वेव पर प्रश्नोत्तर किये। इस अवसर पर राजस्थान संगीन नाटक अकादमी के पूर्व अध्यक्ष रमेश बोराणा, डॉ. एस.पी.रंगा, डॉ. अनुराधा आडवानी, सईद खान, रमेश भाटी नामदेव, पूजा जोशी सहित रंगकर्मी, साहित्यकार एवं प्रबुद्धजन उपस्थित थे। दोनो सत्र का संचालन राजस्थानी भाषा के युवा साहित्यकार वाजिद हसन क़ाज़ी ने किया।

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